जन्मजन्मान्तरं कृतं पापं व्याधिरूपेण बाधते |
तस्य शान्त्यै जप तप होम सुरार्चनैः |
जन्म जन्मांतरम के किये हुए पाप व्याधि के रूप में आते हैं और उनकी शांति के लिए जप, तप,हवन और पूजा अर्चना की जाती हैं। शास्त्र में दैव व्यापाश्रय चिकित्सा भीं कहीं न कहीं ज्योतिष शास्त्र को दर्शाता हैं और ये सब चीजे वायु के द्वारा ही सम्पादित होती हैं। जब वायु की विकृत अवस्था में मन और दिमाग न जानें कौन से कर्म की बातें करने लग जातें हैं और मनुष्य अंगों पर संतुलन खो देता हैं। इस प्रकार का रोगी जब सांसारिक कर्मो से दूर हो जाता हैं तो परिवार जन परेशान होकर जहां तहां दूसरी चिकित्सा विधियों का प्रयोग करते हैं वहीँ मानसिक शांति के लिए ज्योतिष भी महत्वपूर्ण कार्य करता हैं। कहा भी जाता हैं ‘मन चंगा तो कठोती में गंगा ‘ इसलिए मन की ऊर्जा को बढ़ाने हेतु ज्योतिष के भाग
-वास्तु शास्त्र
-ग्रह दोष
-हस्तरेखा विज्ञान
-कुंडली ज्ञान
-अंक विज्ञान
का सहारा लेकर एक वैद्य अपने रोगी को रोग से मुक्त करता हैं। इसलिए आयुर्वेद में स्पष्ट कहा गया हैं की शारीरिक रोगों को मानसिक शक्ति के द्वारा ठीक किया जा सकता हैं और मानसिक रोगों को औषधियों व् ज्योतिष द्वारा ठीक करते हैं।
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